भगवद गीता एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जो न केवल धर्म और कर्म का मार्ग दिखाता है, बल्कि व्यक्ति को आत्मबोध की ओर भी ले जाता है। यह ज्ञान महाभारत के युद्ध के प्रारंभिक क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया था। यह केवल युद्ध की रणनीति नहीं थी, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने का अमूल्य ज्ञान था।
तो आइए जानते हैं, कैसे अर्जुन ने गीता का ज्ञान सुना, क्यों सुनना पड़ा, और क्या था उसका महत्व?
⚔️ युद्धभूमि पर अर्जुन का मनोबल क्यों टूटा?
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले जब दोनों सेनाएँ कुरुक्षेत्र में आमने-सामने खड़ी थीं, अर्जुन ने देखा कि दूसरी ओर उनके गुरु, दादा, भाई, रिश्तेदार और मित्र खड़े हैं।
यह देखकर अर्जुन का मनोबल टूट गया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा:
“गोविन्द! मैं इन सब पर बाण कैसे चला सकता हूँ? मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मुँह सूख रहा है, मेरा मन भ्रमित हो गया है।”
🕉️ श्रीकृष्ण द्वारा गीता का उपदेश
जब अर्जुन धर्मसंकट में पड़ गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवद गीता का उपदेश दिया। यह संवाद कुल 18 अध्यायों में फैला है और लगभग 700 श्लोकों में श्रीकृष्ण ने जीवन के हर पहलू — कर्म, भक्ति, ज्ञान, योग और मोक्ष — की विवेचना की।
📚 अर्जुन ने कैसे सुना गीता का ज्ञान?
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श्रद्धा और समर्पण से – अर्जुन ने अपने रथ की बागडोर श्रीकृष्ण को पहले ही सौंप दी थी। जब वे भ्रमित हुए, तो उन्होंने स्वयं को श्रीकृष्ण का शिष्य घोषित किया:
“कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः… शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्”
(हे प्रभु! मैं आपका शिष्य हूँ, कृपया मुझे उपदेश दीजिए।) -
ध्यानपूर्वक और शांत मन से – अर्जुन ने हर श्लोक को ध्यान से सुना, प्रश्न पूछे और उत्तर ग्रहण किए।
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प्रश्न पूछकर समझा – अर्जुन केवल सुनने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने जिज्ञासु बनकर कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे — जैसे:
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कौन श्रेष्ठ है — कर्मयोगी या सन्यासी?
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क्या हर कर्म फल की अपेक्षा से करना चाहिए?
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मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है?
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🌿 अर्जुन के जीवन में गीता का प्रभाव
गीता सुनने के बाद अर्जुन की दृष्टि बदल गई। उन्होंने कहा:
“नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा… करिष्ये वचनं तव।”
(मेरा मोह नष्ट हो गया है, मुझे स्मृति मिल गई है, अब मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा।)
उन्होंने युद्ध को अब केवल परिवार या सत्ता का संघर्ष नहीं माना, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच का युद्ध समझा — और धैर्यपूर्वक धर्म के पक्ष में युद्ध किया।
🌟 गीता – केवल अर्जुन के लिए नहीं
हालाँकि गीता का उपदेश अर्जुन को दिया गया था, लेकिन यह ज्ञान संपूर्ण मानव जाति के लिए है। यह हमें बताता है:
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जीवन में संकट आएँगे, लेकिन धर्म और सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
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कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो।
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आत्मा अजर-अमर है, शरीर केवल एक माध्यम है।
✅ निष्कर्ष
“अर्जुन सुन गीता का ज्ञान” केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि एक आत्मिक जागरण की यात्रा है। अर्जुन का उदाहरण हमें सिखाता है कि जब जीवन में भ्रम, भय और दुख हो — तब आत्मबोध, कर्म और भक्ति का मार्ग ही मोक्ष का द्वार है।