भारत की आध्यात्मिक परंपरा में कई संत, भक्त और योगिनी हुई हैं, जिन्होंने ईश्वर को पाने के लिए संसार की सभी सीमाओं को पार कर दिया। उन्हीं में से एक थीं — अक्कमहादेवी।
वे दक्षिण भारत की एक महान संत, कवियित्री और वीरशैव भक्ति आंदोलन की अग्रणी साधिका थीं।
अब प्रश्न यह उठता है कि —
“अक्कमहादेवी किस भगवान की अनन्य उपासिका थीं — विष्णु, कृष्ण, शिव या राम?”
आइए जानते हैं उनके जीवन, भक्ति और आध्यात्मिक मार्ग के बारे में।
🌼 अक्कमहादेवी कौन थीं?
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अक्कमहादेवी का जन्म 12वीं शताब्दी में कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले में हुआ था।
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उन्होंने बहुत ही कम उम्र में आध्यात्मिक जीवन को अपना लिया और सांसारिक बंधनों को त्याग दिया।
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वे वीरशैव संप्रदाय की संत थीं, जो शिव भक्ति पर आधारित था।
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उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को भगवान शिव के चरणों में समर्पित कर दिया।
🔱 अक्कमहादेवी किस भगवान की उपासिका थीं?
उत्तर है: भगवान शिव।
अक्कमहादेवी भगवान शिव की अनन्य उपासिका थीं।
उन्होंने शिव को “चेन्नामल्लिकार्जुन” (Chennamallikarjuna) नाम से पूजा।
यह शिव का एक विशेष रूप है, जिसका अर्थ है — “सुंदर मल्लिकार्जुन”, अर्थात कोमल, पुष्पवत शिव।
उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि उन्होंने स्वयं को “शिव की दासी” कहा और शरीर तक की परवाह नहीं की। उन्होंने वस्त्र तक त्याग दिए और कहा:
“शरीर नश्वर है, केवल शिव ही शाश्वत हैं।”
🕉️ अक्कमहादेवी की भक्ति और वचन
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अक्कमहादेवी ने अपनी भक्ति को कविताओं और वचनों (vacanas) के रूप में प्रकट किया।
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उनके वचन कन्नड़ भाषा में लिखे गए, जो आज भी भक्ति साहित्य में उच्च स्थान रखते हैं।
उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति है:
“लज्जे नानु, हे चेन्नामल्लिकार्जुना, नीने मेरा प्राण…”
(अर्थ: हे मेरे शिव, मेरे लिए लोक-लाज नहीं, केवल तुम ही मेरे प्राण हो।)
🔥 सांसारिक जीवन का त्याग
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उन्होंने बचपन में विवाह का दबाव झेला लेकिन ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर अडिग रहीं।
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वे मानती थीं कि परम प्रेम केवल ईश्वर से ही संभव है।
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उनका संपूर्ण जीवन भक्ति, ध्यान और त्याग का उदाहरण है।
📍 आज अक्कमहादेवी का योगदान
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अक्कमहादेवी की स्मृति में कर्नाटक में कई मंदिर और स्मारक हैं।
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उन्हें महिला संत परंपरा की अग्रदूत माना जाता है।
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उनके वचन आज भी कन्नड़ साहित्य, शैव परंपरा और भक्ति आंदोलन में पढ़ाए जाते हैं।
📌 निष्कर्ष
अक्कमहादेवी भगवान शिव की अनन्य उपासिका थीं।
उन्होंने उन्हें “चेन्नामल्लिकार्जुन” के नाम से पुकारा और अपना संपूर्ण जीवन शिव को समर्पित कर दिया।
उनकी भक्ति, साहस और आत्म-समर्पण आज भी आध्यात्मिक साधकों को प्रेरणा देता है।