भगवान श्री कृष्ण के विराट स्वरूप का वर्णन गीता के किस अध्याय में आता है?

श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और दिव्य ग्रंथ है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध भूमि में उपदेश दिया था।
इस ग्रंथ के प्रत्येक अध्याय में जीवन के गूढ़ रहस्य और धर्म का मर्म छिपा है।
लेकिन सबसे अद्भुत और रहस्यमयी दृश्य तब आता है जब श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाते हैं।

तो आइए जानें –
श्री कृष्ण का विराट स्वरूप गीता के किस अध्याय में आता है, उसका महत्व क्या है, और यह स्वरूप क्या दर्शाता है?

📖 विराट स्वरूप का वर्णन – गीता का 11वां अध्याय

भगवद्गीता का ग्यारहवाँ अध्याय – “विश्व रूप दर्शन योग”
यही वह अध्याय है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैं।

इस अध्याय में अर्जुन, श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं:

“हे योगेश्वर! यदि आप मुझे अपना दिव्य रूप दिखाना चाहें तो कृपा करके दिखाएं।”
— (भगवद्गीता, अध्याय 11, श्लोक 3)

भगवान श्रीकृष्ण तब कहते हैं:

“हे अर्जुन! तू मेरे इस विराट रूप को देख जो तूने पहले कभी नहीं देखा। इसके लिए मैं तुझे दिव्य नेत्र प्रदान करता हूँ।”
— (श्लोक 8)

और यहीं से विश्वरूप दर्शन की शुरुआत होती है।

🌟 विराट स्वरूप कैसा था?

भगवान का विराट स्वरूप ऐसा था जो हजारों सूर्य के एक साथ उदय होने पर जो तेज होता, वह भी इसके आगे फीका पड़ जाए।

श्रीकृष्ण के इस रूप में:

  • असंख्य मुख और नेत्र थे

  • असंख्य बाहुएँ, चरण और मुख

  • सारे देवता, ऋषि, यज्ञ, समय और मृत्यु सब उसमें समाहित थे

  • अर्जुन भयभीत हो गया इस स्वरूप को देखकर

“हे प्रभु! मैं आपके इस अद्भुत, प्रलयंकारी और तेजस्वी स्वरूप को देखकर चकित और भयभीत हूँ।”
— (अध्याय 11, श्लोक 24)

🔥 गीता में विराट रूप का उद्देश्य क्या था?

भगवान श्रीकृष्ण ने यह विराट रूप अर्जुन को यह दिखाने के लिए प्रकट किया कि:

  • वह केवल एक मित्र या सारथी नहीं, बल्कि स्वयं परम ब्रह्म हैं

  • वे संपूर्ण ब्रह्मांड के अधिपति हैं — सृजन, पालन और संहार के स्वामी

  • युद्ध केवल अर्जुन का नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए उनका दैवीय आदेश था

इस रूप को देखकर अर्जुन को यह बोध हुआ कि श्रीकृष्ण ही सच्चे भगवान हैं और फिर वह पूर्ण समर्पण के साथ युद्ध के लिए तैयार हुआ।

🙏 क्या यह रूप किसी और को दिखा?

नहीं। यह विराट स्वरूप केवल अर्जुन को दिखाया गया था, और वह भी दिव्य नेत्र प्रदान करके।
इसका तात्पर्य यह है कि ईश्वर का परम सत्य रूप केवल आंतरिक ज्ञान और श्रद्धा से ही अनुभव किया जा सकता है

📌 निष्कर्ष

भगवद्गीता का 11वां अध्याय “विश्व रूप दर्शन योग” वह अध्याय है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाया।
यह स्वरूप बताता है कि भगवान न केवल मानव रूप में हैं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही उनका स्वरूप है।

श्रीकृष्ण का यह रूप भक्ति, समर्पण और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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