सनातन धर्म, जिसे आज आमतौर पर हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है, विश्व का सबसे प्राचीन और गहन धर्म है। लेकिन जब सवाल उठता है कि “सनातन धर्म के संस्थापक कौन थे?” तो इसका उत्तर अन्य धर्मों की तरह सीधा नहीं है। इसका कारण यही है कि सनातन धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं किया गया, बल्कि यह ऋषियों, मुनियों और परम सत्य की खोज करने वालों की दीर्घ परंपरा का परिणाम है।
आइए इस विषय को ऐतिहासिक, दार्शनिक और धार्मिक दृष्टिकोण से समझें।
🔹 सनातन धर्म का अर्थ
“सनातन” का अर्थ होता है – शाश्वत, अनादि और नित्य।
“धर्म” का अर्थ होता है – वह जो धारण करने योग्य है, अर्थात जीवन को सच्चे मार्ग पर ले जाने वाला नियम।
इस प्रकार सनातन धर्म वह धर्म है जो कभी शुरू नहीं हुआ और कभी समाप्त नहीं होगा, यानी यह ब्रह्मांड के सृजन से भी पहले विद्यमान है।
🔹 क्या सनातन धर्म के कोई संस्थापक हैं?
अन्य धर्मों की तरह — जैसे कि:
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ईसाई धर्म के संस्थापक: यीशु मसीह
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इस्लाम के संस्थापक: पैगंबर मुहम्मद
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बौद्ध धर्म के संस्थापक: गौतम बुद्ध
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जैन धर्म के संस्थापक: भगवान महावीर
इनकी तुलना में सनातन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है। यह ऋषियों, तपस्वियों और वैदिक ज्ञान के प्रणेताओं की सामूहिक विरासत है।
🔹 सनातन धर्म की नींव रखने वाले प्रमुख ऋषि
हालाँकि इसका कोई “संस्थापक” नहीं है, लेकिन कई ऋषियों और मुनियों ने इसके दर्शन और ज्ञान को संहिताबद्ध किया। इनमें प्रमुख हैं:
🔸 ब्रह्मा:
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा जी को ब्रह्मांड का स्रष्टा माना जाता है। उन्होंने वेदों को उत्पन्न किया, इसलिए उन्हें वैदिक ज्ञान का पहला संप्रेषक कहा जाता है।
🔸 सप्तऋषि:
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अत्रि
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भृगु
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वशिष्ठ
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विश्वामित्र
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कश्यप
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गौतम
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जमदग्नि
इन सप्तऋषियों ने वेदों, उपनिषदों और धर्मशास्त्रों को व्यवस्थित किया।
🔸 वेदव्यास:
महर्षि वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया — ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद। उन्होंने महाभारत और पुराणों की भी रचना की।
🔹 वेद – सनातन धर्म का मूल आधार
सनातन धर्म की नींव वेदों पर आधारित है।
वेद न तो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा लिखे गए हैं और न ही इनका कोई ज्ञात रचयिता है। इन्हें “अपौरुषेय” (जिसका कोई मानव रचयिता नहीं) कहा गया है। यह ज्ञान ऋषियों ने तपस्या द्वारा आत्मबोध से प्राप्त किया।
🔹 निष्कर्ष: संस्थापक नहीं, परंपरा है
इसलिए यह स्पष्ट है कि सनातन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, बल्कि यह एक अनादिकालीन और दिव्य परंपरा है जो:
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वेदों पर आधारित है,
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ऋषियों की आत्म साक्षात्कार से जन्मी है,
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और मानवता को धर्म, कर्म, भक्ति, और मोक्ष का मार्ग दिखाती है।