धार्मिक

गीता का पावन ज्ञान अर्जुन से पहले किसे प्राप्त हुआ था?

भगवद् गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक अद्वितीय कला है, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्धभूमि में अर्जुन को उपदेश स्वरूप दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह ज्ञान केवल अर्जुन के लिए नया नहीं था? भगवद्गीता का पावन ज्ञान अर्जुन से पहले भी किसी को दिया गया था।तो […]

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सच्चा संत कौन है? जानिए संत की पहचान, गुण और महत्व

भारत की आध्यात्मिक परंपरा में संतों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन एक आम व्यक्ति के मन में यह प्रश्न अक्सर उठता है — “सच्चा संत कौन है?”क्या वह जो भगवा वस्त्र पहनता है, या वह जो प्रवचन करता है? क्या सच्चा संत केवल किसी आश्रम या मठ का संचालक होता है? इस लेख में

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इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?

हमारे शास्त्रों, ग्रंथों और संतों की वाणी में “संत” को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। लेकिन प्रश्न उठता है कि — इस संसार में सच्चा संत कौन होता है?क्या वह जो भगवा वस्त्र पहनता है? क्या वह जो आश्रम चलाता है? या वह जो जीवन को त्याग कर जंगलों में तप करता है? इस

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निर्गुण भक्ति साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि तथा प्रमुख संत कवि और उनके योगदान का उल्लेख कीजिए

र्गुण भक्ति आंदोलन भारतीय साहित्य, दर्शन और समाज सुधार की दृष्टि से एक अत्यंत प्रभावशाली और क्रांतिकारी विचारधारा रही है। यह आंदोलन भक्ति की उस परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें ईश्वर को निर्गुण (रूप-रहित, निराकार) और सार्वभौमिक चेतना के रूप में स्वीकार किया गया। 🌿 निर्गुण भक्ति साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि निर्गुण भक्ति का

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कौन सा संप्रदाय भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति में विश्वास करता है?

हिंदू धर्म में ईश्वर को त्रिमूर्ति के रूप में जाना जाता है—ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन) और महेश/शिव (संहार)। इनमें भगवान विष्णु को पालक माना गया है, जो संसार की रक्षा के लिए समय-समय पर विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं। भगवान विष्णु और उनके अवतारों की उपासना करने वाले अनुयायियों का जो प्रमुख धार्मिक समूह

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कौन सा संप्रदाय भगवान विष्णु और उनके अवतारों की भक्ति में विश्वास करता है?

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। वे त्रिदेवों में से एक हैं — ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और शिव (संहार)। भगवान विष्णु के अनेक अवतारों, विशेषकर राम और कृष्ण, की भक्ति ने भारतीय धार्मिक चेतना को गहराई से प्रभावित किया है। लेकिन क्या आप जानते हैं

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निर्गुण भक्ति साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि तथा प्रमुख संत कवि और उनके योगदान का उल्लेख

निर्गुण भक्ति आंदोलन भारतीय साहित्य और समाज के इतिहास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रतीक है। यह आंदोलन 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच विशेष रूप से उत्तर भारत में विकसित हुआ और इसका प्रमुख उद्देश्य था — ईश्वर को निर्गुण (रूपहीन, निराकार) मानकर उसकी उपासना करना। आइए जानते हैं इस साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि,

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भगवान शिव ने कैसे रोका मां काली का रास्ता?

भारतीय पौराणिक कथाएं देवी-देवताओं की लीला, शक्ति और भक्ति से भरी हुई हैं। इन्हीं कथाओं में एक प्रसिद्ध प्रसंग है — “जब मां काली का क्रोध चरम पर था और संहार करने के लिए वे अग्रसर थीं, तब भगवान शिव ने उनका रास्ता कैसे रोका?” यह कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संकेतों और मानव

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अक्कमहादेवी भगवान की अनन्य उपासिका थीं – विष्णु, कृष्ण, शिव या राम?

भारत की आध्यात्मिक परंपरा में कई संत, भक्त और योगिनी हुई हैं, जिन्होंने ईश्वर को पाने के लिए संसार की सभी सीमाओं को पार कर दिया। उन्हीं में से एक थीं — अक्कमहादेवी।वे दक्षिण भारत की एक महान संत, कवियित्री और वीरशैव भक्ति आंदोलन की अग्रणी साधिका थीं। अब प्रश्न यह उठता है कि —“अक्कमहादेवी

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भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को किस भूमि में खड़े होकर गीता का ज्ञान दिया था?

श्रीमद्भगवद्गीता न केवल हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन का आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने वाला एक सार्वकालिक संदेश भी है।इस दिव्य ग्रंथ का उपदेश स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अपने परम सखा अर्जुन को दिया था। लेकिन यह गूढ़ ज्ञान कहाँ दिया गया था? यह प्रश्न अक्सर श्रद्धालुओं और अध्यात्म में रुचि

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