धर्म का दीपक, दया का दीप कब जलेगा?
विश्व में भगवान कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त होंगे?
यह केवल एक कविता की पंक्ति नहीं, बल्कि मानवता की अंतरात्मा से निकली एक गूंज है।
जब अंधकार अन्याय, अहंकार और हिंसा के रूप में फैल रहा हो — तब यह प्रश्न हमारे मन, बुद्धि और आत्मा को झकझोरता है।
आइए समझते हैं इस वाक्य के गहरे आध्यात्मिक अर्थ और इससे जुड़ी चेतना।
🔥 धर्म का दीपक क्या है?
धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ या कर्मकांड नहीं है। धर्म का दीपक तब जलता है जब:
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सत्य की स्थापना होती है
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अधर्म का विनाश होता है
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मनुष्य अपने कर्तव्य को समझता है
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और प्रेम, करुणा, क्षमा, और सेवा को जीवन का मूल बनाता है
धर्म का दीपक अंदर से जलता है — जब हम भीतर के अज्ञान और लोभ के अंधकार को मिटाते हैं।
🌱 दया का दीप कब जलेगा?
जब समाज में:
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क्रोध की जगह करुणा हो,
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घृणा की जगह प्रेम हो,
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और स्वार्थ की जगह सेवा हो,
तब दया का दीप जलता है।
दया कोई कमजोरी नहीं, यह परम शक्ति है — जो मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है।
जब हम हर जीव में ईश्वर को देखें, तब दया स्वतः प्रकट होती है।
🌟 विश्व में भगवान कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त होंगे?
सुकोमल ज्योति का अर्थ है –
एक ऐसी मृदु, शांत, दिव्य ऊर्जा, जो शांति, संतुलन और आध्यात्मिक प्रकाश से विश्व को आलोकित करती है।
भगवान तभी उस ज्योति से अभिषिक्त होते हैं जब:
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मानवता धर्म और करुणा के पथ पर लौटती है।
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जब अहंकार, युद्ध, और हिंसा समाप्त होते हैं।
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जब बालक भूखा न सोए, और वृद्ध अकेला न रहे।
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जब धर्म व्यापार नहीं, तपस्या बन जाए।
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और जब हर हृदय मंदिर बन जाए।
🔄 यह प्रश्न एक आत्ममंथन है
“कब जलेगा” – इसका उत्तर समय नहीं, हमारे कर्म हैं।
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क्या हम धर्म का दीप जलाते हैं या दूसरों को अंधकार में ढकेलते हैं?
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क्या हमारी वाणी दया से भरी है या कटुता से?
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क्या हमने भगवान को केवल मंदिरों तक सीमित कर दिया है?
यह प्रश्न हमें अहंकार से आत्मा तक की यात्रा करने को प्रेरित करता है।
✅ क्या करें हम?
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सत्य बोलें, भले ही कठिन हो
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अन्याय के विरुद्ध खड़े हों, भले ही अकेले हों
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प्रकृति का सम्मान करें, क्योंकि वही ईश्वर का घर है
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दयालु बनें, क्योंकि दया ही धर्म है
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और नित्य आत्मचिंतन करें, क्योंकि यहीं से हर परिवर्तन शुरू होता है
📜 निष्कर्ष
“धर्म का दीपक, दया का दीप कब जलेगा?” — इसका उत्तर कोई भविष्यवाणी नहीं है।
यह एक आह्वान है — हर हृदय के भीतर उस प्रकाश को प्रज्वलित करने का, जो भगवान की सुकोमल ज्योति है।
जब हर मनुष्य भीतर से उजाला करेगा, तभी विश्व में ईश्वर की पूर्ण उपस्थिति और करुणा की वर्षा होगी।
यही है युग परिवर्तन की सच्ची शुरुआत।