सभी देवी-देवताओं को भोग लगाने का मंत्र

🌺 प्रस्तावना

सभी देवी-देवताओं को भोग लगाने का मंत्र, सनातन परंपरा में भोजन केवल शरीर के लिए नहीं होता — वह ईश्वर को समर्पण का माध्यम होता है। भोग लगाना एक आध्यात्मिक क्रिया है जिसमें भोजन पहले भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सभी देवी-देवताओं को भोग लगाने के लिए कोई एक मंत्र है?
हाँ, ऐसा मंत्र है — और वह श्रद्धा, समर्पण और शुद्धता से जुड़ा है।

🍱 भोग लगाने का अर्थ

भोग का शाब्दिक अर्थ है: “जो अनुभूत किया जाए”।

सनातन धर्म में भोजन को भगवान को समर्पित करके ही खाया जाता है।
ऐसा करने से:

  • भोजन शुद्ध होता है

  • अहंकार कम होता है

  • ईश्वर से संबंध गहरा होता है

🕉️ सभी देवी-देवताओं को भोग लगाने का मंत्र

अगर आप रोज़ाना सभी देवी-देवताओं को भोग लगाना चाहते हैं, तो नीचे दिया गया सार्वभौमिक भोग मंत्र उपयुक्त है:

ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना॥

📖 अर्थ: यह अर्पण ब्रह्म है, अर्पण करने वाला ब्रह्म है, अग्नि ब्रह्म है और हवन ब्रह्म द्वारा किया गया है।
जो व्यक्ति ब्रह्मभाव से यह कर्म करता है, वह ब्रह्म को प्राप्त करता है।

👉 यह भगवद गीता (अध्याय 4, श्लोक 24) का मंत्र है, जो किसी भी देवी-देवता को भोग अर्पण करने में उपयुक्त है।

🙏 विशेष मंत्र — भोग लगाते समय

यदि आप सभी देवी-देवताओं के लिए सरल संकल्प-युक्त मंत्र चाहते हैं, तो यह कह सकते हैं:

“हे समस्त देवी-देवताओं! यह अन्न, जल, नैवेद्य आपके चरणों में समर्पित है। कृपया स्वीकार करें और हमें प्रसाद रूप में प्रदान करें।”

या

“ॐ देवताभ्यो नमः।
एष नैवेद्यं समर्पयामि।”

📌 यह मंत्र सभी देवी-देवताओं को ध्यान में रखते हुए उच्चारित किया जा सकता है।

🍃 भोग लगाने की विधि (संक्षिप्त में)

  1. भोजन को स्वच्छ और सात्विक रखें।

  2. पहले ईश्वर को मन से आमंत्रित करें।

  3. भोग के सामने दीपक जलाएं।

  4. भोग मंत्र पढ़ें।

  5. कुछ क्षण ध्यान करके, मौन भाव से अर्पण करें।

  6. फिर ही भोजन करें — वह “प्रसाद” बन जाता है।

🌟 निष्कर्ष

भोग अर्पण केवल रस्म नहीं, भक्ति का रूप है।
यह आपके हर निवाले को “प्रसाद” में बदल देता है।
सभी देवी-देवताओं के लिए आप उपरोक्त मंत्रों का उपयोग कर सकते हैं — श्रद्धा और सरलता से।

🕉️ “भक्ति में भाव प्रधान है, मंत्र तो माध्यम है ईश्वर तक पहुंचने का।”

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